मोदी लहर में आखिर कौन जीत रहा है राजस्थान की ये 5 VIP सीटे जिन पे दांव पर है दिग्गज नेताओं की किस्मत!

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लोकसभा चुनावों का परिणाम आने में अब लगभग एक दिन का समय शेष है। एग्जिट पोल्स के अनुशार तो देश में एनडीए की सरकार बन रही है। वो भी पूर्ण बहुमत वाली। लेकिन फ़िर भी कोई ये तय नहीं कर पा रहा है। कि किस पार्टी को निश्चित कितनी सीट मिलेगी। हर कोई कहता है वास्तविक स्थिति तो मतगणना में बाद ही चल पायेगी। इन सबके बीच राजस्थान में पांच सीटें ऐसी हैं। जिनपर मुक़ाबला बेहद रोचक माना जा रहा है। वैसे तो भाजपा ने 2014 लोकसभा चुनावों में राजस्थान से कांग्रेस का सूपड़ा-साफ़ किया था। लेकिन इस बार एग्जिट पोल के अनुशार कांग्रेस की उतनी किरकिरी नहीं होगी। अबकी बार कांग्रेस को कुछ एग्जिट पोल्स ने 1-2-3  तक सीटें दी हैं। लेकिन हम आपको बताने वाले है। उन पांच लोकसभा सीटों के बारे में जिन पर दोनों ही पार्टियों की इज्ज़त दांव पर लगी हुई है।

पहली सीट: वैभव गहलोत बनाम गजेंद्र शेखावत, जोधपुर

ये वो सीट है जहाँ से राजस्थान के तीन बार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। लेकिन पहली हार के बाद। यहाँ भाजपा के प्रत्यासी हैं गजेंद्र सिंह शेखावत उर्फ़ गज्जू बन्ना। जो वर्तमान भाजपा सरकार में केबिनेट मंत्री है। साथी ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बहुत ख़ास भी माने जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस के प्रत्यासी हैं। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत। जिनका राजनीतिक पदार्पण है। अपने बेटे का करियर बनाने और अपनी शक्ति को और बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री गहलोत ने उन्हें यहाँ से उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में अगर वैभव गहलोत हारते हैं। तो ये अशोक गहलोत और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ा नुकसान होगा। जबकि भाजपा प्रत्यासी गजेंद्र सिंह शेखावत की हार जोधपुर में मोदी की हार मानी जाएगी। ऐसे में कोई हारे या जीते। पेट में गुड़गुड़ी तो दोनों पार्टयों के मच रही होगी।

दूसरी सीट: दुष्यंत सिंह बनाम प्रमोद शर्मा, झालावाड़-बारां

इस सीट की दास्तान भी कुछ जोधपुर जैसी ही है। क्योंकि यहाँ से भी भाजपा और राजस्थान की दो बार की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था। फर्क़ सिर्फ़ इतना है की वसुंधरा राजे ने अपनी शुरुआत जीत के साथ की थी। फिर झालावाड़-बारां की सीट पर उन्होंने अपने बेटे दुष्यंत सिंह का करियर बना दिया। तब से लेकर 2014 तक ये सीट बीजेपी का गढ़ बन चुकी है। लेकिन इस बार कांग्रेस ने यहाँ से प्रमोद शर्मा को मैदान में उतार कर मुकाबले को थोड़ा मज़ेदार बना दिया है। क्योंकि कांग्रेस ने इस बार किसी कांग्रेस नेता को नहीं बल्कि गैर कांग्रेस नेता को टिकिट दिया। लेकिन कमी ये रह गयी की प्रमोद शर्मा के पास ना तो अनुभव है। और ना ही बड़ा वोट बैंक। क्योंकि प्रमोद शर्मा भाजपा से बागी हैं। जबकि दुष्यंत सिंह स्टार किड और राजा साहब।

तीसरी सीट: राजयवर्धन सिंह राठौड़ बनाम कृष्णा पूनिया

ये सीट उन लोगों के लिए ज़्यादा जरूरी है। जो जयपुरी तो कहलाते हैं। लेकिन फ़िर भी ग्रमीण रहते हैं। इस सीट पर दो खिलाडियों के बीच मुकाबला है। भाजपा की ओर से कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ मैदान में हैं। जो 2014 लोकसभा में शानदार जीत दर्ज़ कर संसद पहुंचे थे। ओलिंपिक पदक विजेता राज्यवर्धन सिंह राठौड़ एक अच्छे खलाड़ी तो है ही। साथ में वे एक अच्छे नेता और अच्छे प्रवक्ता के तौर पर उभरे हैं। जिन्होंने अपने कार्यकाल में काफ़ी विकास कार्य भी करवाए हैं। तो कांग्रेस के प्रत्यासी के रूप में कृष्णा पुनिया हैं। जो एक महिला होने के साथ-साथ एक एथलीट भी हैं। लेकिन राजनीति में पहली बार 2018 विधानसभा चुनावों में आयी थी। अपनी क्षेत्रीय लोकप्रियता और खिलाड़ी की छवि के बूते विधानसभा तो जीत गयी। लेकिन लोकसभा जितने लायक ना तो उनकी लोकप्रियता है, और ना ही अनुभव। यहाँ चुनाव परिणाम देखने लायक होगा।

चौथी सीट: दीया कुमारी बनाम देवकीनंदन गुर्जर, राजसमंद

ये वो सीट है जहां दोनों ही प्रत्यासी बिल्कुल नए हैं। भाजपा की तरफ़ से दिया कुमारी हैं। जो 2013 में भाजपा के लिए सवाई माधोपुर से विधायक का चुनाव जीता था। लेकिन 2018 विधानसभा में उन्हें विधायकी का टिकिट ना देकर। शायद लोकसभा के लिए आरक्षित रखा था। राजसमंद के लिए दीया कुमारी बाहरी व्यक्ति हैं। लेकिन उनकी लोकप्रियता पूरे राजस्थान में कहीं कम नहीं है। जबकि कांग्रेस की उम्मीदवारी पेश कर रहे देवकीनंदन गुर्जर। जिनको जनता इतना नहीं जानती जितना एक लोकसभा प्रत्यासी को जानना चाहिए। ऐसे में कहीं न कहीं सूत्रों के हवाले से ये कहा जा रहा है। राजसमंद का मुक़ाबला एक तरफ़ा हो सकता है। लेकिन फ़िर वही बात। वास्तविकता तो चुनाव परिणाम के दिन ही पता चल पायेगी। क्योंकि यहाँ का मुक़ाबला पूरी तरह से लोकप्रियता और अनुभव के आधार पर तय किया गया होगा।

पांचवी सीट: जाट बनाम जाट अर्थात हनुमान बेनीवाल बनाम ज्योति मिर्धा, नागौर

ये वो सीट है जहाँ सम्पूर्ण रूप से जातीय समीकरणों के आधार पर चुनाव हुआ है। टिकिट भी इसी आधार पर दिए गए थे। हनुमान बेनीवाल जो की जाट समाज के काफ़ी कट्टर नेता माने जाते हैं। जिन्होंने 2018 विधानसभा का चुनाव अपनी अलग पार्टी रालोपा बनाकर लड़े। लेकिन लोकसभा में उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। वहीं कांग्रेस की प्रत्यासी हैं ज्योति मिर्धा। जो अपने खानदानी राजनीतिक दबदबे के कारण टिकिट प्राप्त करने में कामयाब रहीं। लेकिन यहाँ का मुक़ाबला बेहद कड़ा है। क्योंकि दोनों प्रत्यासी जाट समुदाय से हैं। दोनों की लोकप्रियता में भी कोई कमी नहीं है। लेकिन फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि हनुमान बेनीवाल जहाँ ग़रीबों और किसानों के नेता कहलाते हैं। वहीं ज्योति मिर्धा पूंजीपतियों और अमीरों की मसीहा कहाई जाती हैं।

तो ये थी राजस्थान की वो पांच लोकसभा सीटें। जिनका ख़याल आते ही दोनों पार्टयों के नेताओं के पेटों में मरोड़ें उठती होंगी। कहीं हमारा टिकिट देने का फ़ैसला गलत साबित ना हो जाये। वो भी ऐसे समय में जब हिंदुस्तान की राजनीति सबसे नाजुक दौर से गुजर रही हो। एक तरफ वो पार्टी है। जिसने हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, देश भक्ति और विकास के नाम पर वोट माँगा। तो दूसरी ओर वह पार्टी है जिसने शायद पहली बार अपने आप को ग़रीब, किसान, बेरोज़गार और आम आदमी का भला करने वाला कहा है। ऐसे में कल यानि 23 मई 2019 को जो भी नतीजे आएंगे। उनसे पहले दोनों ही पार्टियों की हालत देखने लायक़ होगी।

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