गीता फोगाट को हराने वाली राजस्थान की बेटी दिव्या बनीं भारत केसरी, पिता स्टेडियम के बाहर बेच रहे थे ट्रैक सूट..

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    Geeta Phogat

    किसी ने सही ही कहा है, ‘ज़िंदगी के मैदान में हारने पर फिर से जीता जा सकता है, लेकिन जो अपने मन से हार चुका है, वो फिर कभी नहीं जीत सकता।’ कहा जाता है कि जीत और हार हमारी सोच पर निर्भर करती है। ‘मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत होगी।’ जी हां, किसी भी कार्य में सफलता के लिए हौसले बुलंद होने चाहिए। अगर हौसले बुलंद है तो आपको दुनिया की कोई भी ताकत ना हरा सकती है और ना ही झुका सकती है। हाल ही में ऐसा ही एक नायाब उदाहरण देशभर के लोगों को देखने को मिला। जहां राजस्थान के एक गरीब परिवार की बेटी अपने बुलंद हौसलों के दम पर भारत केसरी प्रतियोगिता का खिताब जीतते हुए उन लाखों लड़कियों की आइडल बन गई है जो गरीबी में जीवनयापन करते हुए खुली आंखों से बड़े सपने देखती है। जो कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं, वो लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणादायक साबित हो सकती है। आइये जानते हैं राजस्थान की भारत केसरी बनीं बेटी की कहानी..

    देश की पहली महिला ओलंपियन रेसलर गीता फोगट को दिव्या ने 2 मिनट में चटाई धूल Geeta Phogat

    राजस्थान के भरतपुर जिले के सिनसिनी गांव की रहने वाली पहलवान दिव्या सेन ने रेलवे की रितु मलिक को फाइनल में हराकर भारत केसरी खिताब अपने नाम कर लिया है। इससे पहले उन्होंने इस प्रतियोगिता में देश की पहली महिला ओलंपियन रेसलर और ‘दंगल’ फिल्म फेम गीता फोगाट को मात्र 2 मिनट में ही चित कर धूल चटा दी। दिव्या के इस प्रदर्शन के बाद उनकी जीत के चर्चे जोरों पर है। देश और राज्य के लोग उन्हें आने वाले समय की स्टार के रूप में देख रहे हैं। भिवानी में आयोजित करीब 2 करोड़ रुपए की इनामी राशि वाले इस कुश्ती दंगल में जब दिव्या दांव आजमा रही थी, तब उनके पिता सूरज सेन स्टेडियम के बाहर ट्रैक सूट, जांघियां और लंगोट बेच रहे थे। दिव्या के घर में भले ही आर्थिक तंगी हो, लेकिन उनके हौसलों में कोई कमी नहीं थी, इसी का नतीजा है कि राजस्थान की बेटी ने भारत केसरी का खिताब जीत​ लिया।

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    एक बार राजस्थान केसरी और 6 बार भारत केसरी रह चुकी है दिव्या Geeta Phogat

    दिव्या के पिता सूरज सेन बताते हैं कि 68 किलो भार वर्ग में खेल रही पहलवान दिव्या एक बार राजस्थान केसरी और 6 बार भारत केसरी का खिताब अपने नाम कर चुकी है। दिव्या के इस खेल में खिताबी जीत की शुरुआत 2012 में भरतपुर में महारानी किशोरी खिताब से शुरू हुर्इं थी। कई साल पहले पिता सूरज रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गए थे। लेकिन दिव्या तीन साल तक भरतपुर में दंगल खेलने आती रही। उनके पिता ने कहा कि अब दिव्या 4 अप्रैल को कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लेने के लिए आॅस्ट्रेलिया जाएगी। पिछले कुछ वर्षों से दिल्ली में रह रही दिव्या ने 68 किलो भार वर्ग में गीता फोगाट के डबल डू दांव को पलटकर ढाक मारते हुए उसे मात्र दो मिलट में ही चित कर दिया। दिव्या के लिए यह कोई नई बात नहीं थी, उसने 5 साल के करियर में कई बार ऐसे उलटफेर वाले परिणाम दिए हैं। ओलंपियन गीता फोगाट को 2 मिनट में चित कर देने वाला क्षण स्टेडियम में बैठे दर्शकों के लिए अप्रत्याशित और रोमांचित कर देने वाला था। Geeta Phogat

    हौसला हो तो चने खाकर भी बादम खाने वालों को चित किया जा सकता है: दिव्या Geeta Phogat

    दिव्या का कहना है कि जीत बादाम खाने से नहीं मिलती, मन में जिद होनी चाहिए। अगर हौसला है तो चने खाकर भी बादम खाने वालों को चित किया जा सकता है। दरअसल, 19 वर्षीय दिव्या के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसके पिता सूरज सेन अखाड़ों के बाहर पहलवानों के लिए ट्रैक सूट, जांघियां और लंगोट बेचते हैं, और उनकी मां संयोगिता इन्हें सिलने का काम करती है। सूरज बताते हैं कि पहलवानी के लिए डाइट बहुत अच्छी चाहिए। लेकिन उनकी बे​टी ने गरीबी में भी हौसलों से वो कर दिखाया है जो अच्छी डाइट लेने वाले पहलवान नहीं कर सके। Geeta Phogat

    ”दिव्या को जीत और उज्जवल भविष्य के लिए राजस्थान ट्रूथ्स टीम की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं। आशा करते हैं दिव्या की कहानी से प्रेरणा लेकर प्रदेश की सैंकड़ों गरीब परिवारों की बेटियां अपने सपनों को नई उड़ान देंगी।।”

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