सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला,  अब इन शर्तों के साथ इच्छा मृत्यु की इजाज़त होगी

    0
    1141
    Supreme Court

    इच्छा मृत्यु को सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला सुनाते हुए शर्त के साथ इच्छा मृत्यु (लिविंग विल) को मंजूरी दी है। इसको लेकर कोर्ट ने सुरक्षा उपाय की गाइडलाइन्स जारी की है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में मरणासन्न व्यक्ति द्वारा इच्छा मृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत (लिविंग विल) को मान्यता देने की बात कही गई है। संविधान पीठ ने इसके लिए सुरक्षा उपायों के लिए गाइडलाइन जारी की है। कोर्ट ने ऐसे मामलों में भी गाइडलाइन जारी की जिनमें एडवांस में ही लिविंग विल नहीं है। इसके तहत परिवार का सदस्य या दोस्त हाईकोर्ट जा सकता है और हाईकोर्ट मेडिकल बोर्ड बनाएगा जो तय करेगा कि पैसिव यूथेनेशिया की जरूरत है या नहीं। कोर्ट ने कहा कि ये गाइडलान तब तक जारी रहेंगी जब तक कानून नहीं आता है। Supreme Court

    सम्मान से मरना हर व्यक्ति का हक: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गरिमा से जीने के अधिकार में गरिमा से मरने के अधिकार को शामिल मानते हुए व्यक्ति को ‘लिविंग विल’ यानी इच्छामृत्यु का अधिकार दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब कोई व्यक्ति जीवित रहते मौत की वसीयत करके कह सकता है कि अगर वह मरणासन्न और लाइलाज स्थिति मे पहुंच जाए तो उसके जीवन रक्षक उपकरण हटा लिए जाएं। सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने कहा था कि राइट टू लाइफ में गरिमापूर्ण मृत्यु का अधिकार में शामिल है ये हम ये नहीं कहेंगे। हम ये कहेंगे कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ारहित होनी चाहिए। कुछ ऐसी प्रक्रिया होनी चाहिए जिसमें गरिमपूर्ण तरीके से मृत्यू हो सके। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि हम ये देखेंगे कि इच्छामृत्यु में यानी इच्छामृत्यु के लिए वसीहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज हो जिसमें दो स्वतंत्र गवाह भी हों। कोर्ट इस मामले में पर्याप्त सेफगार्ड देगा। इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।

    Read More: Congress tries to malign the image of Home Minister Gulab Chand Kataria by sharing this fake video, say reports. Know details

    इच्छा मृत्यु के हक का हो सकता है दुरुपयोग: केन्द्र सरकार

    सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। अंतिम सुनवाई में केंद्र ने इच्छा मृत्यु का हक देने का विरोध करते हुए इसका दुरुपयोग होने की आशंका जताई थी। पिछली सुनवाई में संविधान पीठ ने कहा था कि ‘राइट टू लाइफ’ में गरिमापूर्ण जीवन के साथ-साथ गरिमामय ढंग से मृत्यु का अधिकार भी शामिल है’ ऐसा हम नहीं कहेंगे। हालांकि पीठ ने आगे कहा कि हम ये जरूर कहेंगे कि गरिमापूर्ण मृत्यु पीड़ा रहित होनी चाहिए। हालांकि केन्द्र सरकार ने इच्छा मृत्यु यानी लिविंग विल का विरोध किया है। सरकार का कहना है कि इच्छा मृत्यु के हक का दुरुपयोग हो सकता है। केन्द्र ने कहा है कि अगर कोई लिविंग विल करता भी है तो भी मेडिकल बोर्ड की राय के आधार पर ही जीवन रक्षक उपकरण हटाए जाएंगे। बता दें, एक एनजीओ ने लिविंग विल का अधिकार देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उसने सम्मान से मृत्यु को भी व्यक्ति का अधिकार बताया था।

    जानिए.. क्या है इच्छा मृत्यु यानि लिविंग विल?

    ‘लिविंग विल’ एक लिखित दस्तावेज होता है जिसमें कोई मरीज पहले से यह निर्देश देता है कि मरणासन्न स्थिति में पहुंचने या रजामंदी नहीं दे पाने की स्थिति में पहुंचने पर उसे किस तरह का इलाज दिया जाए। लिविंग विल में कोई भी व्यक्ति जीवित रहते वसीयत कर सकता है कि लाइलाज बीमारी से ग्रस्त होकर मृत्यु शैय्या पर पहुंचने पर शरीर को जीवन रक्षक उपकरणों पर न रखा जाए। ‘पैसिव यूथेनेशिया’ यानि इच्छा मृत्यु वह स्थिति है जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की मौत की तरफ बढ़ने की मंशा से उसे इलाज देना बंद कर दिया जाता है।

    अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई देशों में ऐसी व्यवस्था है..

    अमेरिका के कुछ राज्यों में इच्छा मृत्यु की मंजूरी है। अमेरिका के ओरेगन, वॉशिंगटन और मोंटाना जैसे राज्यों में डॉक्टर की सलाह और उसकी मदद से मरने की इजाजत है। वहीं, स्विट्जरलैंड में इच्छा मृत्यु गैर-कानूनी है, लेकिन व्यक्ति खुद को इंजेक्शन देकर अपनी जान दे सकता है। बेल्जियम में सितंबर 2002 से इच्छा मृत्यु वैधानिक हो चुकी है। ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस और इटली जैसे यूरोपीय देशों सहित दुनिया के ज्यादातर देशों में इच्छा मृत्यु गैर-कानूनी है।नीदरलैंड्स में मरीज की मर्जी के बाद डॉक्टर उसे इच्छा मृत्यु दे सकता है।

    ये है निष्क्रिय इच्छा मृत्यु और सक्रिय इच्छा मृत्यु में अंतर

    निष्क्रिय इच्छा मृत्यु में मरीज जीवन रक्षक प्रणाली पर अचेत अवस्था में रहता है। वह तकनीकी तौर पर जिंदा रहता है, लेकिन शरीर और दिमाग निष्क्रिय होते हैं। इस स्थिति में परिवार की मंजूरी पर इच्छा मृत्यु दी जा सकती है। वहीं, सक्रिय इच्छा मृत्यु के मामले में मरीज खुद इच्छा मृत्यु मांगता है। ऐसे मरीजों के ठीक होने की उम्मीद खत्म हो जाती है और उनके चाहने पर इच्छा मृत्यु दी जा सकती है।

    RESPONSES

    Please enter your comment!
    Please enter your name here