राजस्थान : कब्रगाह बनी सांभर झील, 10 दिन में 25 प्रजातियों के 8,000 से ज्यादा पक्षियों की मौत

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    जयपुर। राजस्थान की सांभर झील अपने नमक के लिए दुनियाभर में महशूर है, इसके साथ ही यह फोटोग्राफरों और पर्यटकों के लिए जानी जाती है। यहां हर साल हजारों की संख्या में विेदशों से प्रवासी पक्षी आते है जिसमें फ्लेमिंगो खास है। इस झील में हजारों पक्षियों की अचानक मौत हो गई। पक्षियों की मौत का कारण अभी पता नहीं चला है, 10 दिन में करीब 25 अलग-अलग प्रजातियों के करीब आठ हजार से ज्यादा परिंदों की मौत हो चुकी है। अधिकतर पक्षी रतन तालाब के पास मृत पाए गए हैं।

    इन प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों की गई जान
    मरने वाले पक्षियों नॉदर्न शावलर, पिनटेल, कॉनम टील, रूडी शेल डक, कॉमन कूट गेडवाल, रफ, ब्लैक हेडड गल, ग्रीन बी ईटर, ब्लैक शेल्डर काइट कैसपियन गल, ब्लैक विंग्ड स्टील्ट, सेंड पाइपर, मार्श सेंड पाइपर, कॉमस सेंड पाइपर, वुड सेंड पाइपर पाइड ऐबोसिट, केंटिस प्लोवर, लिटिल रिंग्स प्लोवर और लेसर सेंड प्लोवर शामिल है।

    ऐसे हुआ खुलासा
    इनमें हिमालय, साइबेरिया, नॉर्थ एशिया समेत कई देशों से आने वाले प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है कि झील में किसी तरह कोई जहरीला केमिकल पहुंचा गया या फिर झील में कोई ऐसी चीज पहुंची है, जो बेजुबान पक्षियों की जान ले रही है। इस घटना का खुलासा तब हुआ जब जयपुर से कुछ पक्षी विशेषज्ञ सामान्य स्टडी और फोटोग्राफी के लिए सांभर झील पहुंचे। वे झील में चारों ओर मृत पक्षियों को देखकर हैरान रह गए।

    ये माना जा रहा मौत का कारण
    इस वर्ष अच्छी बारिश के बाद सांभर झील में पानी की अच्छी आवक हुई थी। जिससे यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की संख्यचा में इजाफा होने की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन यहां मिले परिंदों के शवों को देखकर ऐसा अंजादा लगाया जा रहा है कि आसपास की किसी फैक्ट्री ने इस झील में ऐसा ज़हरीला कचरा छोड़ा है जो बेजुबान परिंदो के लिए जानलेवा साबित हो रहा है। परिंदों के ज्यादातर शव एक दिन पुराने हैं। वन विभाग को न तो मामले की खबर लगी, न ही किसी ने इस मामले में अब तक सुध ली।

    देश की सबसे बड़ी खारे पानी की है झील
    जयपुर जिले में स्थित सांभर देश की सबसे बड़ी खारे पानी की झील के तौर पर जानी जाती है। यह 190 से 230 वर्ग किलोमीटर तक फैली हुई है। हर साल हजारों प्रवासी पक्षी यहां लंबा सफर तय कर के आते हैं। मगर यहां चल रही गतिविधियों, बढ़ती बस्तियों और बदलते मौसम की वजह से उनकी संख्या कम होती जा रही है।

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