राजस्थान में चिकित्सकों का बार-बार हड़ताल पर जाना क्या वाकई ज़ायज है?

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Rajasthan Doctors Strike
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राजस्थान में अपनी 33 मांगों को लेकर प्रदेश के सेवारत डॉक्टर पिछले कुछ समय से आंदोलन कर रहे हैं। हाल ही में प्रदेश के करीब 9 हजार सेवारत डॉक्टरों ने सामूहिक इस्तीफे सौंप दिए ​थे। इस घटनाक्रम के बाद सरकार के उच्च स्तर पर हस्तक्षेप हुआ। अच्छी बात ये है कि सरकार और डॉक्टरों के ​बीच दो चरणों की बातचीत के बाद सहमति बन गई है। लेकिन डॉक्टरों ने अपनी मांगों को मानने के लिए सरकार को 30 नवंबर तक का समय दिया है। जिसमें मुख्य रूप से डी.ए.सी.पी जैसे मामले हैं, वहीं कैडर समान करने जैसी मांगों के लिए डॉक्टर्स ने सरकार को 31 दिसंबर तक मानने की चेतावनी दी है। डॉक्टर्स का इसके आगे कहना है कि अगर सरकार ने दिए गए समय में मांगें नहीं मानी तो दोबारा आंदोलन किया जाएगा। 

इन प्रमुख मांगों पर बनी सहमति: चिकित्सा मंत्री कालीचरण सराफ व ​विभाग के उच्च अधिकारियों के साथ सेवारत डॉक्टरों के प्रतिनिधिमंडल से दूसरे दौर की वार्ता के दौरान प्रमुख मांगों पर सहमति बन गई। जिसमें चिकित्सा विभाग में सीनियर पदों पर लगे आरएएस हटाए जाने, डॉक्टर्स को डी.ए.सी.पी का लाभ और ग्रेड-पे बढ़ाए जाने जैसी प्रमुख मांग शामिल है। Rajasthan Doctors Strike

डॉक्टर्स का बार-बार हड़ताल पर जाना कितना ज़ायज

हमारे समाज में चिकित्सकों को बहुत ही ज्यादा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। यही वजह है कि लोग अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने का सपना देखते हैं। हालिया वर्षों में कई बार यह देखा गया है कि राजस्थान में डॉक्टर अपनी मांगों को लेकर, मरीज के परिवारजनों से विवाद को लेकर या अन्य कई कारणों से हड़ताल पर चले जाते हैं। डॉक्टरों की हड़ताल के दौरान ऐसा कई बार हुआ है कि मरीजों की जान ही जोखिम में आ गई या समय पर डॉक्टर नहीं होने और चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने की स्थिति में मरीजों की मृत्यु तक हो गई। डॉक्टरों की हड़ताल के दौरान मरीजों का भगवान ही मालिक होता है। चिकित्सा जैसे बेहद जिम्मेदाराना प्रोफेशन में मरीजों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर डॉक्टर्स का बार-बार हड़ताल पर चले जाना कितना ज़ायज है? क्या मरीजों को अपने हाल पर छोड़कर हड़ताल पर जाना डॉक्टर्स की अपनी मांगें मनवाने का एक सही तरीका है? क्या बेवजह मांगों को लेकर इस्तीफा देने जैसे दबाव सरकार पर बनना उचित है? इन सवालों का जबाब आप भी बखूबी जानते होंगे। अगर नहीं जानते हैं तो कोई बात नहीं नीचे हम डॉक्टर्स की मांग व तर्क और सच्चाई से आपको रूबरू करा रहे हैं। Rajasthan Doctors Strike

डॉक्टर्स की मांग व तर्क और असल सच्चाई

चिकित्सकों की मांग है कि अन्य राज्य सेवाओं की तरह पृथक चिकित्सा सेवा कैडर का गठन किया जाए। इस मांग की असल सच्चाई यह है कि, राजस्थान चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा नियम, 1963 के अंतर्गत पहले से ही चिकित्सकों का अलग कैडर बना हुआ है। चिकित्सक संघ का तर्क है कि पृथक कैडर के अभाव में उनको पदोन्निति के प्रर्याप्त अवसर प्राप्त नहीं हो रहे हैं। ज​बकि राजस्थान के चिकित्सकों को प्रत्येक 6 साल में डी.ए.सी.पी के माध्यम से पदोन्नत कर सरकार वित्तीय लाभ दे रही है।

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सेवारत चिकित्सक संघ द्वारा प्रस्ताव के अनुसार महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं का पद सृजित हो, जिसका मूल वेतनमान ही 80,000/- रूपए हो। इसके अलावा 4 अतिरिक्त महानिदेशक के पद सृजित किए जाने की मांग की है जिनका मूल वेतनमान भी 80,000/- रूपए हो। इसके अलावा 10 निदेशक और 28 अतिरिक्त निदेशक की भी मांग है जिनका मूल वेतनमान 67,000-79,000/- चाहा गया है। जबकि सच्चाई यह है कि चिकित्सक संघ द्वारा मांग किया गया वेतनमान राजस्थान के पड़ोसी ​राज्य गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र कहीं पर भी स्वीकृत नहीं है। महाराष्ट्र में चिकित्सा सेवा में उच्चतम पद निदेशक का है जिसका ग्रेड-पे 8900/- रूपए है, जो राजस्थान में कार्यरत निदेशक के ग्रेड-पे से कम है। वहीं मध्य प्रदेश में राजस्थान के बराबर ग्रेड-पे हैं। गुजरात में चिकित्सकों के लिए अतिरिक्त ​निदेशक का उच्चतम पद है, जिसकी ग्रेड-पे 8900/- रूपए है। गुजरात में निदेशक के स्थान पर आयुक्त का पद है जो आईएएस अधिकारी कैडर का है। क्या चिकित्सक संघ की ये मांगें किसी भी तरह से उचित है। Rajasthan Doctors Strike

पदोन्निति का लाभ  Rajasthan Doctors Strike

चिकित्सक संघ की मांग है कि पदोन्निति या डी.ए.सी.पी का लाभ चिकित्सकों को उनकी मूल भावना के अनुरूप समयबद्ध रूप से दिया जाए। उनका तर्क है कि पदोन्निति समझौत के अनुसार समय पर नहीं हो रही है। इसकी सच्चाई यह है कि राज्य में समयबद्ध पदोन्निति सिर्फ और सिर्फ चिकित्सकों को ही ​दी जा रही है। लेकिन जिन चिकित्सकों की पदोन्निति नहीं हो पाती उनका कारण यह है कि वे समय पर अपना सेवा रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं करवा पाते हैं, इसलिए उनकी पदोन्निति अटक जाती है। Rajasthan Doctors Strike

चिकित्सकों का तर्क है कि पदोन्निति का लाभ डेट आॅफ जॉइनिंग से दिया जा रहा है जोकि गलत है और डी.ए.सी.पी एरियर की वसूली की जा रही है। जबकि हकीकत यह है कि पदोन्निति का लाभ प्रदेश की सभी राज्य सेवाओं में डेट आॅफ जॉइनिंग से दिया जाता है। वहीं एरियर की वसूली भी स्थगित कर दी गई है। अगर मध्य प्रदेश से तुलना करें तो वहां तीसरी डी.ए.सी.पी का लाभ 30 वर्ष बाद दिया जाता है लेकिन राजस्थान में यह लाभ 18 वर्ष पर ​ही दिया जा रहा है। Rajasthan Doctors Strike

चिकित्सालयों में एकल पारी की मांग

चिकित्सकों की मांग है कि राजकीय चिकित्सालयों का एकल पारी में संचालन हो। इसके पीछे चिकित्सकों का तर्क यह है कि उन्हें दो बार आने पर असुविधा होती है जिससे उनका पारिवारिक ​जीवन और सामाजिक ​जीवन प्रभावित हो रहा है। जबकि सच्चाई यह है कि सन् 2002 में सरकारी अस्पतालों का समय एक पारी में किया गया था, जिसका बहुत ज्यादा जन विरोध हुआ था। सांयकालीन पारी में समाज के सबसे गरीब पिछड़े तबके के लोग जैसे दिन दहाड़ी मजदूर आदि आते हैं, जो दिनभर मजदूरी करते हैं। ऐसे लोग अगर सुबह की पारी में आते हैं तो उन्हें मजदूरी का नुकसान होगा, जो इन गरीब लोगों के लिए​ बिल्कुल भी सही नहीं है। देश के अधिकांश राज्यों में भी सुबह और शाम की पारी की एक समान व्यवस्था लागू है ताकि मरीजों को लंबी लाइन में नहीं लगना पड़े। Rajasthan Doctors Strike

ऐसे में अब आप ही बताएं कि डॉक्टर्स का मरीजों को भगवान के भरोसे छोड़ इस तरह की मांगों के लिए बार-बार हड़ताल पर जाना कितना ज़ायज है। डॉक्टर्स को मरीजों की समस्या को समझते हुए यह पहल करनी चाहिए कि सिर्फ बाजिव मांग सरकार के सामने रखें और आंदोलन या हड़ताल के लिए ऐसे रास्ते अपनाएं जिससे मरीजों को किसी भी प्रकार की असुविधा ना उठानी पड़े और समय पर इलाज के अभाव में मौत से बचाया जा सके। Rajasthan Doctors Strike

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