संजय लीला भंसाली की विवादित फिल्म पद्मावती देशभर में राजपूत और हिन्दू समुदायों के विरोध एवं हंगामे के बीच फंस गई है। इस फिल्म में असत्यापित तौर से चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मावती और मुस्लिम शासक अलाउद्दीन खिलजी के बीच प्रेम प्रसंग दिखाया गया है जो विरोध की असली वजह है।
कुछ लोग पद्मावती की कहानी को महज एक काल्पनिक कथा मानते हैं। यहां तक की कवि मलिक मोहम्मद जायसी की वर्ष 1540 में लिखी ‘पद्मावत’ गाथा को भी एक मन की कल्पना का दर्जा देते हैं। वहीं कुछ इसे केवल किताबों में लिखी कहानी समझते हैं। Padmavati Controversy Chittorgarh
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असल में चित्तौड़गढ़ में हुई खुदाई और वहां मिले सबूत तथ्य की ओर इंगित करते हैं कि महारानी पद्मावती, अलाउद्दीन खिलजी और रावल रतन सिंह के बीच हुआ युद्ध और रानी पद्मावती का जौहर कुछ भी झूठा नहीं है, बल्कि यह सब कुछ सच है। यहां तक की गोरा-बादल कविता में भी पद्मावती का जिक्र हुआ था। करीब 60 साल पहले पुरातत्व विभाग ने चित्तौड़गढ़ में खुदाई के दौरान जौहर के सबूत भी मिले थे।
Padmavati Controversy Chittorgarh
जौहर का सबूत: खुदाई में राख-चूड़ियां भी मिलीं
पद्मावती या पदमनी मेवाड़ की महारानी थीं। माना जाता है कि चित्तौड़ में खिलजी के हमले के वक्त अपने सम्मान को बचाने के लिए उन्होंने साल 1303 में जौहर किया था। वर्ष 1958-59 में दुर्ग पर बने विजय स्तंभ के पास पुरातत्व विभाग की खुदाई में राख, हडि्डयां और लाख की चूड़ियां मिली थीं। खुदाई में एक कुंड भी मिला है जिसमें मिटटी, राख और हडि्डयां मिलीं थी। जांच के बाद पुरातत्व विभाग ने इसे जौहर स्थल घोषित किया जिसका बोर्ड चित्तौड़ के किले में आज भी चस्पा है। दुर्ग अब विश्व विरासत है इसलिए किसी प्रकार के निर्माण, बोर्ड या सूचना लगाने का अधिकार पुरातत्व विभाग के पास ही है।
महज कल्पना नहीं है पद्मावती
हिस्ट्री रिसर्चर और चित्तौड़ पीजी कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल डाॅ. ए.एल. जैन कहते हैं कि जो लोग पद्मिनी के इतिहास को मात्र मोहम्मद मलिक जायसी का काव्य कहकर खारिज करते हैं, वे सही नहीं हैं। यह महज कल्पना होती तो जायसी के कथानक में सभी किरदार वे ही नहीं होते, जो बाकी इतिहासकार मानते हैं। मेवाड़ के इतिहासकार रामवल्लभ सोमाणी ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि भारतीय पुरातत्व विभाग की खुदाई में गढ़ पर राख और हडि्डयां निकली थीं।