जयपुर। हमारे देश में कानून तो बना हुआ है लेकिन समय पर न्याय नहीं मिलता। जब मामला कोर्ट का हो तो इसमें न्याय में देरी जरूरी होती ही है। एक ऐसा ही मामला प्रदेश के चूरू से सामने आया है। यहा एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता को ना चाहते ही हुए भी बच्चे को जन्म देना पड़ेगा। पीड़िता और उसकी विधवा मां को जब गर्भ का पता चला तो वे उसे गिराने की इजाजत लेने के लिए कोर्ट पहुंचे। उस समय 20 सप्ताह का भ्रूण बच्ची के गर्भ में था। लेकिन गर्भ गिराने की याचिका पहले तो एससी—एसटी और पॉक्सो कोर्ट में घूमती रही। 17 दिन बाद कोर्ट ने कहा कि यह मामला उनके ज्यूरिसडिक्शन पॉवर में नहीं है। इसके बाद जोधपुर हाईकोर्ट में इसके लिए रिट याचिका लगाई।
चौथे दिन यह याचिका पर सुनवाई हुई और हाईकोर्ट ने सरकार की विभिन्न एजेंसी को नोटिस जारी कर मीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट बनाने का आदेश दिया। दस दिन बाद कंसीडरेशन के दौरान एएजी ने बताया कि भ्रूण अब 25 सप्ताह का हो गया और मां बच्चे को जन्म देने के लिए फिट है। मेडिकल रिपोर्ट में भी कहा गया कि भ्रूण का दिल धड़कने लगा है, वह मां को किक भी मारने लगा है। निरपराध बच्चे को दुनिया में आने से कोई कैसे रोक सकता है। ऐसे में गर्भ गिराने की अनुमति नहीं मिली और बच्चे काे जन्म देना ही पड़ा।