किसान आंदोलन से गहलोत-जोशी ने खुद को किया दूर, पायलट-पांडे के कंघों पर है दारोमदार

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राजस्थान में किसान आंदोलन को लेकर अब कांग्रेस के भी पांव उखड़ने लगे है। प्रदेश में किसानों को आंदोलन के लिए प्रेरित करने वाली कांग्रेस अब जमीन पर ही नही है। कांग्रेस की आपसी गुटबाजी का एक नमूना यहां भी देखने के लिए मिल गया है। जिस किसान आंदोलन को प्रदेश कांग्रेस राज्य सरकार के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल करना चाह रही थी वहीं किसान कांग्रेस के साथ नही है और किसानों का कांग्रेस के साथ नही होने का सबसे बड़ा कारण कांग्रेस की आपसी रंजिश है। किसान आंदोलन की अगुआई करने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने सारी तैयारियां कर ली थी लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने पायलट को पथरीली राह पर बिना चप्पल से भेज दिया है, यानी कि अब कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव पद पर आसीन सीपी जोशी ने अपने आप को इस आंदोलन से दूर कर लिया है।

पायलट और पांडे ही एक दूसरे का सहारा, दिग्गजों ने छिटकाया

राजस्थान कांग्रेस अब पूरी तरह से कमजोर पड़ चुकी है। पिछले दिनों किसान आंदोलन को लेकर कांग्रेस के दिग्गजों ने पीसीसी चीफ पायलट का साथ नही दिया था तो जोशी हमेशा से ही इस मुद्दे से दूर बने हुए है। ऐसे में किसानों के मुद्दें को लेकर कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ही बचे है जिनके कंधों पर सारी जिम्मेदारी आ गई है। प्रदेश कांग्रेस में सचिन पायलट लगता है कि अब अकेले हो गये है उनके साथ उनकी ही पार्टी के नेता नजर नही आ रहे है।

धौलपुर चुनाव के  बाद से पायलट-गहलोत में आई दुरियां

किसानों ही नही कई मुद्दों पर कांग्रेस पार्टी की टूट सामने आई है। इससे पहले जब धोलपूर विधानसभा में उप चुनाव थे तब भी पूर्वमुख्यमंत्री गहलोत और सचिन पायलट के बीच आपसी मनमुटाव की खबरें आ रही थी लेकिर जबसे राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रदेश के कांग्रेस विधायकों की बैठक ली थी तब से सचिन पायलट का साथ प्रदेश के सभी कांग्रेस दिग्गज नेताओं ने छोड़ दिया है।

कामत की डिनर डिप्लोमेसी ने डुबाई कांग्रेस की नैय्या

राजस्थान मे 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बूरी तरह से हारने के बाद पार्टी के तत्कालीन प्रदेश प्रभारी रहे गुरुदास कामत ने कांग्रेस को फिर से एकजुट करने के लिए डिरन डिप्लोमेसी का कॉंसेप्ट काम में लिया था। इस डिनर डिप्लोमेसी के तहत सभी कांग्रेसी एक दुसरे के यहा खाना खाने के लिए जाते थे और अपने गम-दुख एक दुसरे से शेयर कर फिर से साथ आने की कोशिश करते थे। कामत का यह आइडिया फ्लॉप तो हुआ लेकिन इन डिप्लोमेसी ने कांग्रेस से ओर ज्यादा टुकड़े कर दिए। डिनर डिप्लोमेसी का नतीजा यह रहा की प्रदेश कांग्रेस के दो बडे चेहरों में आपसी वर्चस्व की जंग छिड गई।

राहुल की दिल्ली बैठक भी है कांग्रेस को बांटने की जिम्मेदार

धौलपुर विधानसभा उपचुनाव के बाद कांग्रेस की आपसी फूट एक बार फिर सामने आगई थी। जहां सचिन पायलट जाते थे वहां अशोक गहलोत नही जाते । धौलपुर चुनाव के दौरान में यह बहुत बार देखने को मिला। कांग्रेसी अशोक गहलोत और सचिन पायलट के नाम पर आपस में बंट गये। ऐसी स्थिती देख पायलट राहुल गांधी के पास राजस्थान से सभी विधायकों को लेकर पहुंचे। इस बैठक का नतीजा भी कांग्रेस की फूट का ही  एक हिस्सा था। राहुल ने गहलोत के गुजरात प्रभारी बनाकर भेज दिया और राजस्थान को पायलट के हवाले कर दिया।

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