सावन का पहला सोमवार आज, राजस्थान के इन शिवालयों की अनसुनी बातें जानकर दंग रह जाएंगे आप

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    भगवान शिव की आराधना का विशेष महीना आज भोले के शुभ दिन सोमवार से शुरु हो गया है। सोमवार जो देवाधिदेव महादेव की पूजा-अर्चाना के लिए बेहद खास माना जाता है। सावन के पहले सोमवार से शिवालयों में बाबा भोलेनाथ के विशेष दर्शन होंगे तो मंदिरों में जल, दूध और पंचामृत से महादेव का खास अभिषेक होगा। बाबा नीलकंठ के भक्तजन शिवालों में आक, धतूरा, बिल पत्र आदि चढ़ाकर भोले को रिझाने का प्रयत्न करेंगे। मंदिरों में मंगला आरती के साथ रूद्री पाठ और रुद्राभिषेक भी होंगे। आज से कांवड़ यात्रा भी शुरू हो गई है और देश भर के शिव मंदियों में भोलेनाथ के जयकांरें गूंज रहे है। आज हम आपकों राजस्थान के पांच शिवालयों के बारें में विस्तार से बताएंगे जो वर्षों पुराने है और शिवजी की पूजा आराधना के लिए खास महत्व रखते है।

    घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग – शिवाड़, सवाई माधोपुर

    घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग भगवान शंकर का निवास है। घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग महादेव का अवतार है। यह ज्योतिर्लिंग राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के ग्राम शिवाड़ में देवगिरि पहाड़ के अंचल मे स्थित है। जो जयपुर से मात्र 100 किलोमीटर दूर स्थित है। यह जयपुर कोटा रेलमार्ग पर ईसरदा रेल्वे स्टेशन से 3 किलोमीटर दूर स्थित है।

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    घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का यह पवित्र मंदिर कई वर्षो पुराना है। वर्षभर में लाखों लोग यहाँ आते है। देवगिरी पर्वत पर बना घुश्मेश्वर उधान रात्री के समय लाइटिंग में अदभुत छटायें बिखेरता हैं। श्रद्धालुओं की मण्डली शिवरात्री एवं श्रावण मास के दौरान बहुत ही रंगीन नजर आती है। शिवरात्री साल में एक बार फाल्गुन महीने में आती है। भगवान शिव के द्धादश्वें ज्योतिर्लिंग के स्थान के बारे में पिछले वर्षो में कई दावे व आपत्तियां उठाई गई। लेकिन शिवपुराण के प्रमाण से ये साबित हो गया है की यह द्धादशवाँ ज्योतिर्लिंग शिवाड़ (राजस्थान) में ही स्थित है। शिवपुराण के अनुसार द्धादशवाँ ज्योतिर्लिंग शिवालय में है। पुरातनकाल में इस स्थान का नाम शिवालय था जो अपभ्रंष होता हुआ, शिवाल से शिवाड़ नाम से जाना जाता है।

    एकलिंग महादेव मंदिर, उदयपुर

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    मेवाड के संस्थापक बप्पा रावल महादेव में आस्था रखते थे तथा उन्होनें उदयपुर में ही एकलिंग जी का मन्दिर निर्माण करवाया था, बप्पा रावल के बाद महाराणा कुम्भा नें एकलिंग जी के मंदिर का पुनर्रूद्धार कराया । मेवाड के शासक स्वयं को एकलिंग जी महादेव का दीवान कहते थे। हिन्दु धर्म में वैष्णव  “शैव” शाक्त धर्म को समान रूप से मान्यता प्राप्त है। सावन महीने में मेवाड़ के एकलिंक महादेव मंदिर में लाखों की संख्यां में भक्तजन पहुंचते है। मान्यता है कि उदयपुर या मेवाड़ में आज भी किसी कार्य को करने से पहले भगवान शिव के एकलिंग रुप को पूजा जाता है।

    झाडख़ंड़ महादेव मंदिर – जयपुर

     

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    ढुंढ़ाड़ के लोगों की आस्था का प्रतीक माने जाने वाले झाडखंड़ महादेव मंदिर की छटा सावन में अलग ही होती है। लगातार शिवधुनों को बीच बाबा भोले को रिझाने के लिए लाखों भक्त इस मंदिर में अपना शीश नवाते है। कभी हरियाली से आच्छादित रहे झाडख़ंड महादेव मंदिर को बाबा देवीदास और गोविंदनाथ जैसे तपस्वियों ने पूज्य बनाया था। लोग झाडख़ंड के शिव लिंग को स्वयंभू मानते हैं। कुछ लोग इस जगह को गोरखपंथी नाथों का तपस्या स्थल भी मानते हैं। इस बारे में यह तर्क दिया जाता है कि आमेर नरेश पृथ्वीराज 1503 के समय ढूंढाड़ में गोरखपंथी योगियों की भक्ति परम्परा का जोर रहा। संत कृष्णदास पयहारी के गलता आगमन के बाद उनसे प्रभावित राजा पृथ्वीराज व उनकी महाराणी बालाबाई ने पयहारीजी को अपना राजगुरु बना लिया। ऐसे में नाथ योगी तारानाथ सहित कई नाथपंथी संत ढूंढाड़ से चले गए।

    अचलेश्वर महादेव मंदिर – माउंट आबू, सिरोही

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    राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन माउंटआबू में स्थित अचलगढ़ महादेव तीर्थ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है जहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। भगवान शिव के सभी मंदिरों में उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन यहां भगवान शिव के अंगूठे की पूजा होती है। यह दुनिया का इस तरह का इकलौता मंदिर है। भगवान शंकर यहां अंगूठे में वास करते है। इस मंदिर की कई खासियत है जो इससे सबसे अलग और अनूठे शिव मंदिर के रूप में ला खड़ा करती है। इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है यहां का शिवलिंग जो कि दिन मे तीन बार अपना रंग बदलता है। इस मंदिर का शिवलिंग एक दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है। सुबह इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग का रंग लाल होता है। लेकिन दोपहर में इसका रंग पूरी तरह बदलकर केसरिया हो जाता है। उसके बाद सूर्यास्त के बाद यानी शाम में यह शिवलिंग उजले रंग में तब्दील हो जाता है। फिर शिवलिंग का यह रंग रात तक रहता है।  बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना 2500 साल पहले हुई थी।

    शीतलेश्वर मंदिर, झालरापाटन

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    झालरापाटन से 2 किमी दुर चंद्रभागा नदी के किनारे शीतलेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। सावन माह में मंदिर का दृश्य अलौकिक हो जाता है। असंख्य भक्तों के मुखों से गुंजता शिव घोष मानों आकाश को शिव मय बना देता है। चंद्रभागा नदी के तट पर बने अनेक मंदिरों में शीतलेश्वर महादेव का मंदिर सबसे बड़ा एवं प्राचीन प्रतीत होता है। मंदिर के समीप से प्राप्त एवं अभिलेख में किसी चंद्रशेखर में किसी चंद्रशेखर शिव के मंदिर का उल्लेख है तथा जिसमें शिव की विश्वमूर्ति रुप में उपासना की गई है। शीतलेश्वर मंदिर में मुख्य अधिष्ठाता देव के रुप में शिव के लकुलीश रुप की उपासना की जाती थी, जो पाशुपत संप्रदाय के जन्मदाता थे। यह राजस्थान में शिव का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर है। प्रवेश द्वार के सिरदल पर दो भुजाओं वाले लकुलीश की प्रतिमा उत्कीर्ण है। यहाँ से प्राप्त वराह मूर्ति की चौकी के अभिलेख में पाशुपत आचार्य द्वारा लकुलीश की उपासना के उल्लेख से लकुलीश संप्रदाय की लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है।

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