भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कहने को तो भारत में करीब 60 साल तक शासन कर चुकी है और आज भी देश के कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार कायम है। कांग्रेस कि विचारधारा में राष्ट्रीयता है या नही इसके बारें में कहना जरा मुश्किल हो सकता है। एक दौर पहले जब देश नया नया आजाद हुआ था जिसके बाद भारत और पाकिस्तान के बंटवारें में हमारा कश्मीर गेहूं के बीच घुन की तरह पिस कर रह गया। आज जो कश्मीर हम देख रहे है यह कश्मीर तत्कालीन कांग्रेस की ही देन है। कांग्रेस द्वारा पेदा की गई कश्मीर समस्या का समाधान आज तक नही पाया और कर्नाटक में भी कांग्रेस सरकार ने एक नया बखैड़ा शूरू कर दिया है। अब कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार कश्मीर कर तर्ज पर कर्नाटक के लिए भी एक नया और देश से अलग झंडा बनाने जा रही है। इससे साफ सिद्ध होता है कि कांग्रेस देश को एक नही रहने देना चाहती। कांग्रेस ने देश के टुकड़े करने के लिए कोई कोर-कसर नही छोड़ी और यह उसके लिए एक और उदाहरण पेश करता है।
नया झंडा बनाने की कवायदें शुरू की सिद्धारमैया सरकार ने
कर्नाटक राज्य सरकार ने राज्य के लिए एक नया झंडा बनाने की कवायदें शुरू कर दी है। कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने विफक्ष के विरोध का भी एक नया रास्ता निकाल कर अपनी इस पहल का बचाव कर लिया। जानकारी के अनुसार कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने नौ सदस्यों वाली एक समिति का गठन कर अलग झंडा डिजाइन करने और इसके लिए कानूनी आधार मुहैया कराने के लए एक रिपोर्ट बनाने के लिए कहा गया है। अगर कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार अलग झंडे की कवायद को अमलीजामा पहना देती है तो कश्मीर के बाद कर्नाटक देश का दूसरा राज्य बन जाएगा जिसे संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष अधिकार मिल जाएंगे।
2012 में भाजपा सरकार के समय में भी की गई थी कोशिश
आपको बता दें 2012 में राज्य में भाजपा की सरकार थी तब भी विपक्षियों ने कर्नाटक के लिए अलग झंडे की मांग की थी लेकिन उस वक्त सरकार ने कर्नाटक हाईकोर्ट में कहा था कि वह कर्नाटक के लिए लाल और पीले रंग के झंडे को नहीं अपना सकती है क्योंकि एक अलग झंडा देश की एकता और अखंडता के खिलाफ होगा। उस वक्त जब यह मसला जब राज्य विधानसभा में उठा था कन्नड़ और संस्कृति मंत्री गोविंद एम कारजोल ने कहा था, ‘ झंडा कोड राज्यों के लिए झंडे की अनुमति नहीं देता है। हमरा राष्ट्रीय ध्वज भारत की एकता और अखंडता और संप्रभता का प्रतीक है।अगर राज्यों का अपने अलग झंड़े होंगे तो यह राष्ट्रीय ध्वज के महत्व को कम करेगा। इसके साथ यह प्रांतवाद की भावनाओं को भी भड़का सकता है।’