बजट 2018-19: क्या रोजगार पर अपना वादा पूरा कर पाएगी सरकार!

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    Budget 2018-19

    केन्द्रीय बजट 2018-19 में अब ज्यादा समय नहीं रह गया है। ऐसे में देशभर के उद्योगों की उम्मीद इस पर टिकी हुई है। यह बजट इसलिए भी खास होगा कि 2019 में होने वाले आम चुनावों से पहले एकमात्र ऐसा बजट है, जिसमें मोदी सरकार अपनी इच्छाशक्ति या नीतिगत दृष्टिकोण पर खुलकर अमल कर सकती है। इस बजट के बाद नेक्सट बजट फरवरी, 2019 में पेश होगा। तब आम चुनाव ठीक सामने होंगे। ऐसे में जब आम चुनाव ठीक सामने हों, तो बजट फिर मुकम्मल बजट जैसा नहीं रहता। यानि उस समय की घोषणाएं लोगों को लोक—लुभावन घोषणाएं ज्यादा नज़र आती है।

    1 फरवरी, 2018 का बजट मोदी सरकार का ऐसा बजट है, जिसमें अपने हिसाब से खुलकर कदम उठाने की छूट है। इस बजट में रोजगार, रोजगार के अवसर, कमाई के अवसर इस समय आर्थिक और राजनीतिक तौर पर बहुत ही संवेदनशील मसले हैं। बजट 2018-19 में सबकी निगाहें इन बातों पर रहेंगी कि मुख्य रूप से रोजगार, कमाई वगैरह के मसलों पर बजट में आमलोगों के लिए क्या खास रहता है।

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    रोजगार के अर्थ पर अभी से बहस शुरू Rajasthan Budget

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में हुए आम चुनाव से पहले की सभाओं में रोजगार के मुद्दे पर  बहुत जोर देते हुए मनमोहन सरकार से जवाब मांगा करते थे। अब वही सवाल प्रधानमंत्री मोदी की ओर आएंगे। ऐसे में रोजगार का अर्थ क्या है, अब इस पर अभी से बहस शुरू हो गई है। रोजगार देने का आशय किसी फैक्ट्री, दफ्तर में एक फिक्स घंटे की नौकरी से है या फिर किसी छोटी सी शॉप पर मिली नौकरी को भी नौकरी मान लिया जाएगा। यह सरकार के लिए बहुत बड़ा सवाल है। जिसका जवाब सरकार को देना होगा। हाल में श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक मार्च 2017 में संगठित क्षेत्र में लगे लोगों की संख्या करीब दो करोड़ दस लाख थी। Rajasthan Budget

    देशभर में विकास और रोजगार की मोदी सरकार में स्थिति Rajasthan Budget

    हाल ही में अर्थव्यवस्था विकसित होती दिख रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि देश में रोजगार के अवसर भी बढ़ रहे हैं। मोदी सरकार में अब तक आम युवाओं के लिए वैसे रोजगार नहीं बढ़े हैं जैसे वो चाहते हैं। हजारों युवा विभिन्न डिग्री लेकर घूम रहे हैं, लेकिन नौकरी नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि रोजगार के लिए बजट क्या कर सकता है। सरकार ने रोजगार को कारोबार भी माना है। मोदी सरकार ने अभी तक करीब 9 करोड़ मुद्रा कर्ज दिए हैं जिनसे 6 करोड़ से ज्यादा नौकरी के अवसर पैदा हुए हैं।

    स्टूडेंट्स को एजुकेशन लोन पर छूट देनी होगी

    हालिया आंकड़े बताते हैं कि एजुकेशन लोन में एनपीए बढ़ा है। जानकारी के अनुसार, 2016-17 में शिक्षा कर्ज का 7.67 प्रतिशत लोन डूब गया था। जबकि इससे दो साल पहले यह 5.7 फीसदी था। उच्च अध्ययन करने के लिए महंगे कर्ज लेकर पढ़ाई पूरी करने वाले युवाओं को या तो नौकरी नहीं मिली या अच्छी सैलरी पर नौकरी नहीं मिली। इसलिए युवाओं में एजुकेशन लोन चुकाने की क्षमता नहीं है। इस वजह से गरीब और मध्यवर्ग सरकार से इस मसले पर खासा नाराज है। बजट 2018—19 में सरकार को कुछ ऐसे प्रावधान लाने चाहिए जिससे एजुकेशन लोन सस्ता हो और जो एजुकेशन लोन एनपीए बन गया हो, उसे आसानी से निपटाया जा सके। इस सवाल का जवाब भी इस बजट में हरहाल में मिलना ही चाहिए। सरकार अगर कंपनियों के लिए लोन चुकाने को लेकर रियायती पुनर्गठन कर सकती है तो स्टूडेंट्स के लिए भी तो ऐसे प्रावधान कर ही सकती है। जिससे स्टूडेंट्स को एजुकेशन लोन चुकाने में असानी हो।

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