ओवैसी और BTP में हुआ गठबंधन तो इन 50 सीटों पर बिगड़ेगा कांग्रेस का समीकरण

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    जयपुर। राजस्थान की राजनीति में निकाय और जिला परिषद के चुनाव परिणामों से बदले राजनीतिक माहौल में अब एक नए खिलाड़ी की एंट्री होने जा रही है। हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी अब राजस्थान में सक्रिय हो रहे है। पिछले कुछ दिनों से एआईएमआईएम पार्टी की राजस्थान में एंट्री की चर्चा चल रही थी। एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी और बीटीपी के बीच गठबंधन की संभावनाओं के बाद से ही प्रदेश में सिसासी चर्चाएं जोरों पर हैं। कांग्रेस-बीजेपी के नेता इस नए अप्रत्याशित गठंबधन से लाभ-हानि का गणित लगा रहे हैं। इस गठबंधन से कांग्रेस खेमे में सबसे ज्यादा चिंताएं हैं। कांग्रेसी रणनीतिकार 15 जिलों में 50 से ज्यादा सीटों पर समीकरण बिगड़ने की आशंका जता रहे हैं। इस गठबंधन से सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस के वोटों का ही मानकर चल रहे हैं।

    गठबंधन हुआ तो कांग्रेस वोट बैंक में सेंध
    ओवैसी और बीटीपी का गठबंधन अभी हुआ नहीं है, लेकिन राजनीतिक हालात जिस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। उनमें इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता है। अगर दोनों का गठबंधन होता है तो प्रदेश में कांग्रेस के दो बड़े वोट बैंक मुस्लिम और आदिवासी में सेंध लगना तय है। एक मोटे अनुमान के अनुसार, 15 जिलों की करीब 50 से ज्यादा सीटों पर बीटीपी और ओवैसी की पार्टी मिलकर समीकरण बिगाड़ सकते हैं। ओवैसी का फोकस 15 जिलों की 40 मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर है।

    सर्वे पर काम कर रही है टीम ओवैसी
    बताया जाता है कि ओवैसी की टीम सर्वे का काम कर रही है और संभावनाएं टटोलनी शुरू कर दी हैं। भावी उम्मीदवारों तक के बारे में काम शुरू किया जा चुका है। बीटीपी ने पिछली बार डूंगरपुर और बांसवाड़ा में कांग्रेस तथा बीजेपी के समीकरण बिगाड़े थे। इस बार बीटीपी उदयपुर और प्रतापगढ़ में विस्तार करेगी।

    अल्पसंख्यक नेताओं ने दिया ओवैसी को न्यौता
    नगर निगम चुनाव में मुस्लिम महापौर नहीं बनाए जाने से नाराज अल्पंसख्यक वर्ग ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। कांग्रेस से नाराज अल्पसंख्यक नेता ओवैसी की पार्टी के नेताओं से संपर्क कर उन्हें राजस्थान की सियासत में आने का न्यौता दे रहे हैं। कुल मिलाकर ओवैसी के इस ट्वीट से साफ है कि कि वे राजस्थान की सियासत में उतरने को बेताब हैं और पंचायत जिला परिषद चुनाव के दौरान बीटीपी-कांग्रेस के बीच हुई दूरी का फायदा लेकर आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगाने के प्रयास में हैं।

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