प्रदेश के कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल की मौत के 20 दिन बाद भी यह मामला शांत नज़र नही आ रहा है। एक तरफ राजपूत समाज है जो लगातार इस अपराधी की मौत की जांच सीबीआई से करवाना चाहता है तो दूसरी तरफ वो पुलिसकर्मी जिन्होंने आनंदपाल नाम की दहशत से न जाने कितने ही लोगों को राहत दिलाई है। अब हालात पर नज़र डालते है तो यह वाकया सामने आता है कि आनंदपाल की मौत के लिए सीबीआई जांच की मांग करने वालों को यह कौन समझाएं की एक अपराधी की मौत की जांच होनी चाहिए या उस अपराधी द्वारा किए गए निर्दोष लोगों की हत्याओं की जांच की मांग होनी चाहिए। परिवार क्या आनंदपाल का ही है क्या उन 6 लोगों और उन पुलिसवालों का परिवार नही था जिनको आनंदपाल ने अपनी गोलियों का शिकार बनाया। एक वहशी दरिंदें के लिए जो लोग न्याय और जांच की मांग करते है उन्हे उन्हे उन लोगों के लिए आवाज उठानी चाहिए जो उसकी दरिंदगी का शिकार हुए है। कैसा उल्टा समाज है, जिसने अपराध किया उसको तो भगवान बना दिया जो जिन्होने अपराधी को खत्म किया उन्हे रावण का दर्जा मिल रहा है। अगर परिवार को आनंदपाल की मौत के लिए सीबीआई जांच ही करवानी है तो हाईकोर्ट के रास्ते खुले है लेकिन इस परिवार ने हिंसा का रास्ता अख्तियार किया। जाति के आधार पर राजनीति करने वालों को इस पर भी चैन नही मिला और जाते जाते आनंदपाल ने एक व्यक्ति की बलि ले ही ली।
दोनों बेटियां कर रही है लोगों को भावनात्मक ब्लैकमेल
गुरुवार को आनंदपाल के शव का अंतिम संस्कार करने के बाद आनंदपाल की दोनों बेटियों ने मोबाइल वॉइस रिकॉर्डिंग के ज़रिए लोगों को गुमराह करने की कोशिशें करती रही। आनंदपाल की दोनों बेटियों ने मोबाइल रिकॉर्डिंग में कहा कि उनके पिता का जबरन दाह संस्कार किया जा रहा है, परिवार की सहमति के बिना अंतिम संस्कार की क्रिया करवाई जा रही है। लोगों से मदद और सुरक्षा की अपील की, राजपूत समाज को भावनात्मक रुप के ब्लैकमेल किया। ऐसे में पुलिस ने आनंगपाल की बेटी चीनू उर्फ चरणजीत के खिलाफ भी मामला दर्ज किया है जिसमे जनता को भावनात्मक रूप से भड़काने और भीड़ को उग्र करने के लिए भाषण देने का आरोप है। आज चीनू उर्फ चरणजीत को अपने पिता के लिए न्याय की याद आ रही है अगर आनंदपाल की यहीं बेटियां इतना इमोश्नल ब्लैकमेल अपने पिता को किया होता तो शायद आनंदपाल एक अपराधी नही बल्कि एक जिम्मेदार पिता होता और जिंदा होता।
आनंदपाल की मौत पर परिवार के साथ राजनेता कर रहे है दोहरी राजनीति
आनंदपाल की मौत के बाद उसकी लाश पर राजनीति करने के लिए आसपास के लोगों ने दोहरी राजनीति करना शुरु कर दिया था। परिवार की सहानुभूति हासिल कर आनंदपाल की लाश को राजनीति करने का जरिए बनाया। राजपूत समाज को उकसाया और सांवराद में श्रद्धांजली सभा के नाम पर भीड़ एकत्रित की गई। आनंदपाल के लिए न्याय और सीबीआई जांच की मांग करने वाले नेताओं ने अपना पूरा दमखम लगाया ताकि लोगों की नज़रों में हीरों बन जाए। ये शायद पहला परिवार होगा जो अपने बेटे के शव को घर में रखकर उसकी लाश पर राजनीति करने वालों को न्योता दे रहा था।
हाईकोर्ट से मिल सकती है सीबीआई जांच, लेकिन हिंसक राजनीति नही होती
आनंदपाल की मौत की अगर परिजनों को सीबीआई जांच ही करवानी थी तो हाईकोर्ट के दरवाजे हमेशा खुले रहते है वहां से सीबीआई जांच के आदेश ले सकते थे लेकिन कोर्ट से सिर्फ सीबीआई जांच के आदेश मिलते तो यह राजनीति कैसे होती। जाति कार्ड खेलकर आनंदपाल की मौत पर राजनीति की जा रही है। राजपूत समाज को बरगलाया जा रहा है, कुछ नेताओं को रोजी-रोटी मिल जाएगी, चेहरे चमक जाएंगे, आने वाले विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदार बन जाएंगे बस इन छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए हाईकोर्ट जाना नही हुआ।